देश भर में सिविल क्षेत्र के अंतर्गत 57 नए केंद्रीय विद्यालय (केवी) खोलने को दी मंजूरी।

शिमला,भाजपा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं सांसद सुरेश कश्यप ने कहा कि शिमला संसदीय क्षेत्र के कोटखाई विधानसभा और पांवटा साहिब विधानसभा के लिए केंद्रीय विद्यालय की ऐतिहासिक सौगात देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा,केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का हार्दिक आभार एवं धन्यवाद करता हूं।उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी के समस्त नेतृत्व,प्रदेश अध्यक्ष डॉ राजीव बिंदल एवं नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर की ओर से इस बड़ी सौगात के लिए हम केंद्र सरकार का धन्यवाद करते हैं।उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने केंद्र सरकार के कर्मचारियों के बच्चों की बढ़ती संख्या को देखते हुए उनके बच्चों की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए देश भर में सिविल क्षेत्र के अंतर्गत 57 नए केंद्रीय विद्यालय (केवी) खोलने को मंजूरी दे दी है,जिसमें से दो हिमाचल को मिले है,57 नए केंद्रीय विद्यालयों की स्थापना के लिए निधियों की कुल अनुमानित आवश्यकता 5862.55 करोड़ रुपये (लगभग) है,जो 2026-27 से नौ वर्षों की अवधि को कवर करती है।इसमें 2585.52 करोड़ रुपये (लगभग) का पूंजीगत व्यय और 3277.03 करोड़ रुपये (लगभग) का परिचालन व्यय शामिल है।उल्लेखनीय है कि पहली बार इन 57 केंद्रीय विद्यालयों को बाल वाटिका,यानी बुनियादी चरण (प्री-प्राइमरी) के 3 वर्षों के साथ मंजूरी दी गई है।सुरेश काश्यप ने कहा कि नवीनतम जीएसटी सुधारों ने देश भर में बोझ कम किया है और विभिन्न राज्यों व क्षेत्रों को इसके विविध लाभ मिले हैं।हिमाचल प्रदेश,जो अपने समृद्ध पारंपरिक शिल्प,विशिष्ट कृषि उपज और बढ़ते उद्योगों के लिए जाना जाता है,में जीएसटी दरों में हालिया कटौती का गहरा प्रभाव पड़ने की संभावना है।ये छोटे कारीगरों और बुनकरों के लिए राहत,किसानों और कृषकों के लिए नए अवसर और हिमाचल प्रदेश के औद्योगिक समूहों के लिए अधिक प्रतिस्पर्धात्मकता लाएँगे।ये सुधार मिलकर आजीविका को मज़बूत करेंगे और राज्य को निरंतर विकास की ओर अग्रसर करेंगे।उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध हथकरघा उत्पादों,खासकर शॉल और ऊनी वस्त्रों को नए जीएसटी ढांचे में राहत मिलने की उम्मीद है।ये उत्पाद सिर्फ़ स्मृति चिन्ह नहीं हैं ये हज़ारों कारीगरों की आजीविका का ज़रिया हैं।कुल्लू घाटी में,स्वयं सहायता समूहों से जुड़े 3,000 से ज़्यादा बुनकर चमकीले पैटर्न वाले,जीआई-टैग वाले,कुल्लू शॉल बनाते हैं।ये बुनकर राज्य भर के अनुमानित 10,000-12,000 हथकरघा कारीगरों का हिस्सा हैं,जो इन हस्तशिल्पों से अपनी आजीविका चलाते हैं।पड़ोसी किन्नौर ज़िले के शॉल,जो जटिल पौराणिक रूपांकनों से सजे हैं,कई हज़ार कारीगरों द्वारा बुने और हाथ से रंगे जाते हैं।जीएसटी 12% से घटकर 5% होने से,उपभोक्ताओं के लिए इन हस्तनिर्मित उत्पादों की लागत में कमी आने की उम्मीद है। यह कदम कारीगरों की प्रतिस्पर्धात्मकता एवं आय को सीधे तौर पर बढ़ावा देता है।पश्मीना शॉल को भी 12% से बढ़ाकर 5% कर दिए जाने से लाभ हुआ है।हालाँकि इसे अक्सर कश्मीर से जोड़ा जाता है,हिमाचल प्रदेश का अपना उत्पादन लाहौल-स्पीति,किन्नौर,कुल्लू, मंडी और शिमला जैसे क्षेत्रों में भी होता है।हथकरघा क्षेत्र के10,000-12,000 कारीगरों में से कई पश्मीना से जुड़े हैं और शानदार ऊनी शिल्प तैयार करते हैं। कर में कटौती से इस उच्च-मूल्य वाले क्षेत्र में भी राहत मिली है,जिससे कारीगरों को मार्जिन बनाए रखते हुए अपने शॉलों की कीमतें अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने में मदद मिल सकती है।शॉलों के साथ-साथ,पारंपरिक हिमाचली टोपियाँ,जैसे बहुरंगी किन्नौरी टोपियाँ और दस्ताने जैसे अन्य ऊनी सामान भी संशोधित जीएसटी स्लैब से लाभान्वित होंगे।ये वस्तुएँ ऊँचाई वाले ज़िलों के हज़ारों कारीगरों द्वारा हाथ से बुनी जाती हैं।कम कर से उपभोक्ताओं के लिए कीमतों में कुछ हद तक कमी आने की उम्मीद है।इससे कारीगरों और बुनकरों की आजीविका सुरक्षित होगी और पीढ़ियों पुराने शिल्प को संरक्षित करने में मदद मिलेगी।

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