
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने प्रदेश भर में डी-वर्मिंग अभियान शुरू किया।इस अभियान के तहत प्रदेश भर के आंगनबाड़ी केंद्रों एवं शिक्षण संस्थानों में बच्चों को एल्बेंडाजोल की गोलियां खिलाई गईं।प्रदेश भर के करीब 16 लाख बच्चों को एल्बेंडाजोल की दवा खिलाई गई।बुधवार सुबह से लेकर शाम तक यह अभियान चला, इस बीच अगर कोई बच्चा छूट जाता है,तो उसके लिए पांच दिसंबर को मॉक अप राउंड के तहत घरों में ही दवा खिलाई जाएगी।एक से 18 वर्ष के आयु वाले बच्चों को यह दवा खिलाई गई है,जबकि इस अभियान के साथ एक से पांच साल के बच्चों को विटामिन-ए की खुराक भी पिलाई गई है।

2015 से एल्बेंडाजोल दवा खिलाने का अभियान शुरू किया गया है और वर्ष में दो बार छह माह के अंतराल में इसे खिलाया जाता है।इसके लिए जिलावार टारगेट निर्धारित होता है,जिसके लिए जिलाधीश एजुकेशन, डब्ल्यूसीटी और स्वास्थ्य विभाग के साथ बैठक करते हैं और इस कार्यक्रम के लिए रूपरेखा तैयार की जाती है। आईसीएमआर की रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल में मिट्टी से बच्चों में कीड़ें जाने के मामले मात्र एक प्रतिशत है और भारत में हिमाचल टॉप-5 में शुमार है,जहां पर मिट्टी से कीड़े पेट में जाने के मामले बहुत कम हैं।शरीर में खून की कमी दूर होती है।बच्चों का सही पोषण होता है।बच्चों की शारीरिक वृद्धि अच्छी तरह होती है,उनका वजन बढ़ता है।अच्छा मानसिक और शारीरिक विकास होता है।बच्चे की सुस्ती दूर होती है।कई अन्य रोगों से लडऩे के लिए शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।बच्चे की मेमोरी बढ़ती है और वह स्कूल में सक्रिय रहता है।बच्चों के पेट में कीड़े होने से उनका शारीरिक और मानसिक विकास ठीक से नहीं हो पाता है।शारीरिक कमजोरी,शरीर में खून की कमी,चिड़चिड़ापन जैसी समस्याएं होने लगती हैं।वे कुपोषण के शिकार होने लगते हैं।इसका उनके शारीरिक और मानसिक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है।एल्बेंडाजोल की गोली खाने से बच्चों को कीड़ों के साथ खून की कमी से भी छुटकारा मिलेगा।उनका शारीरिक और मानसिक विकास अच्छी तरह होगा।बड़े बच्चे यह गोली चबाकर खा सकते हैं,जबकि छोटे बच्चों को ये गोली पानी के साथ दी जाएगी।
