राज्यपाल ने दिया पारम्परिक ज्ञान के महत्व पर बल।

राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने युवा वैज्ञानिकों का आह्वान किया कि वे आर्टिफिश्यल इंटेलिजेंस के उपयाग के साथ-साथ पारम्परिक ज्ञान को भी न छोड़ें।उन्होंने कहा कि शोध का लाभ देश-दुनिया के लिए होना चाहिए न कि विनाश के लिए।राज्यपाल यहां हिम साइंस कांग्रेस एसोसिएशन द्वारा आयोजित दो दिवसीय 12वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर बोल रहे थे।हिम साइंस कांग्रेस एसोसिएशन ने यह सम्मेलन भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद्-हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान के सहयोग से आयोजित किया है।राज्यपाल ने पर्यावरण संरक्षण जैसे गहन,प्रासंगिक एवं दूरदर्शी विषय पर चर्चा के लिए इस सम्मेलन के आयोजन के लिए आयोजकों के पहल की सराहनीय की।राज्यपाल ने कहा कि आज यह समझना जरूरी है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी तभी सार्थक सिद्ध होंगे जब वे लोक परंपराओं,पारम्परिक ज्ञान और प्रकृति के साथ संतुलन स्थापित करें।उन्होंने कहा कि आज जब हम प्रौद्योगिकी के एक नये युग में प्रवेश कर रहे हैं तो यह आवश्यक हो जाता है कि हम अपनी समृद्ध ज्ञान परंपरा को आधुनिक विज्ञान और नवाचार से जोड़ें।इस प्रकार के सम्मेलनों में होने वाली चर्चाएं इसी दिशा में एक सार्थक प्रयास हैं।उन्होंने कहा कि हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य,जहाँ प्रकृति,संस्कृति और परंपराएं एक-दूसरे में रची-बसी हैं,वहाँ से इस प्रकार की संगोष्ठियों की पहल न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि वैश्विक विमर्श में भी एक महत्वपूर्ण योगदान है।शुक्ल ने कहा,‘यदि हम अपनी युवा पीढ़ी को राष्ट्र की इस विरासत पर शोध करने के लिए प्रेरित कर पाएं,तो निश्चित रूप से भारत आने वाले समय में वैश्विक कल्याण में एक निर्णायक भूमिका निभा सकेगा।उन्होंने कहा कि देश,विदेश से बड़ी संख्या में पर्यटक प्राकृति का आनंद लेने के लिए हिमाचल आते हैं।लेकिन,यह पहाड़ी प्रदेश भी अब प्रदूषण की समस्या का सामना करने लगा है।उन्होंने कहा कि इन चुनौतियों को हम पारम्परिक ज्ञान से भी सुलझाया सकते हैं। उन्होंने कहा कि नॉलेज सिस्टम में अनुसंधान का बहुत महत्व है जिसका परिणाम है कि दुनिया ने भारत के ब्रमोस मिसाईल की ताकत को समझा है जो पूरी तरह स्वदेशी है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इस मंच के माध्यम से विभिन्न वैज्ञानिक अनुशासनों से जुड़े विद्वान अपने अनुसंधानों के निष्कर्ष प्रस्तुत करेंगे,जो समसामयिक वैज्ञानिक विकास,नवाचार और सामाजिक सरोकारों से जुड़े विषयों पर आधारित होंगे।इस अवसर पर,उन्होंने नशे के दुष्प्रभावों पर भी अपने विचार सांझा किए।

राज्यपाल ने इस अवसर पर हिम साइंस कांग्रेस एसोसिएशन द्वारा प्रकाशित पत्रिका का विमोचन भी किया।उन्होंने कुमारी आशीन और शवीन चौरटा को ‘चोफला पुरस्कार से सम्मानित किया।इस अवसर पर, मुख्य वक्ता के तौर पर पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष प्रो.आदर्श पाल विग ने कहा कि अर्थशास्त्र और पर्यावरण विकास के मॉडल हैं।उन्होंने कहा कि दुनिया ने विकास के लिए अर्थशास्त्र को तो महत्व दिया लेकिन पर्यावरण संरक्षण कहीं पीछे छूट गया,जो पहली प्राथमिकता होनी चाहिए थी।उन्होंने कहा कि ‘मेरा पर्यावरण,मेरी जिम्मेदारी’ हर व्यक्ति का यह ध्येय होना चाहिए।उन्होंने कहा कि हिमाचल जैसा पहाड़ी राज्य आपदा के लिए सबसे संवेदनशील है,इसलिए वहां पर्यावरण संरक्षण की अधिक जिम्मेदारी है।उन्होंने हिमाचल में प्लास्टि बोतलों पर प्रतिबंध की पहल की सराहना की।भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद व हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान के निदेश डॉ.संदीप शर्मा ने राज्यपाल का स्वागत किया।कार्यक्रम के विशेष अतिथि और डीआरडीओ,बेंगलुरु के वैज्ञानिक डॉ.दिलीबाबू विजयकुमार,भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली के पूर्व प्रोफेसर और हिम साईंस कांग्रेस एसोसिएशन के मुख्य संरक्षक प्रो.भुवनेश गुप्ता तथा हिम साईंस कांग्रेस एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रो.दीपक पठानिया ने भी पर्यावरण संबंधी विषय पर अपने विचार व्यक्त किए।
