
केंद्र सरकार द्वारा मजदूर विरोधी निर्णय लेने पर केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने मोर्चा खोल दिया है।केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच के आह्वान पर सीटू राज्य कमेटी हिमाचल प्रदेश ने मजदूरों व कर्मचारियों की मांगों पर प्रदेशव्यापी प्रदर्शन किए।शिमला में हुए प्रदर्शन में सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा,सीटू जिला कोषाध्यक्ष बालक राम,हिमी देवी,कपिल नेगी और प्रताप चंद सहित अन्य कार्यकर्ता मौजूद रहे।

इस मौके पर सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा और महासचिव प्रेम गौतम ने कहा कि केंद्र सरकार लगातार मजदूरों के कानूनों पर हमले कर रही है। इसी कड़ी में मोदी सरकार ने मजदूरों के 44 कानूनों को खत्म करके चार लेबर कोड बनाने,सार्वजनिक क्षेत्र के विनिवेश व निजीकरण के निर्णय लिए हैं उन्होंने ओल्ड पैंशन स्कीम बहाली,आऊटसोर्स नीति बनाने,स्कीम वर्कर्ज को नियमित कर्मचारी घोषित करने,मनरेगा मजदूरों के लिए 350 रुपए दिहाड़ी लागू करने की मांग की।उन्होंने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार पूंजीपतियों के हित में कार्य कर रही है व मजदूर विरोधी निर्णय ले रही है। पिछले 100 वर्षों में बने 44 श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताएं अथवा लेबर कोड बनाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।

आंगनबाड़ी,आशा व मिड-डे मील योजना कर्मियों के खिलाफ निजीकरण की साजिश।
सीटू नेताओं ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा आंगनबाड़ी,आशा व मिड-डे मील योजना कर्मियों के निजीकरण की साजिश की जा रही है।उन्हें वर्ष 2013 के 45 भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार नियमित कर्मचारी घोषित नहीं किया जा रहा है।सुप्रीम कोर्ट द्वारा 26 अक्तूबर,2016 को समान कार्य के लिए समान वेतन के आदेश को आऊटसोर्स, ठेका,दिहाड़ीदार मजदूरों के लिए लागू नहीं किया जा रहा है।केंद्र व राज्य के मजदूरों को एक समान वेतन नहीं दिया जा रहा है।हिमाचल प्रदेश के मजदूरों के वेतन को महंगाई व उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ नहीं जोड़ा जा रहा है।सातवें वेतन आयोग व 1957 में हुए पन्द्रहवें श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार उन्हें 21 हजार रुपए वेतन नहीं दिया जा रहा है।
